काशी नरेश को बाबा किनाराम जी द्वारा श्राप और मुक्ति का मार्ग
18वीं शताब्दी के मध्य
में, काशी के तत्कालीन
महाराजा चेतसिंह ने, बाबा कीनाराम जी का बुरी
तरह अपमान कर दिया था। बाबा ने दुखी होकर भावावेश में आकर कह दिया….”हे अहंकारी राजन, अब तुम्हारा ना राज-पाट बचेगा, ना ही ये किला और ना कोई उत्तराधिकारी, तुम्हारे इस किले पर कबूतर बीट
करेंगें।” इतिहास
गवाह है, कि, राजा चेतसिंह को वो किला छोड़कर भागना
पड़ा और उनका कोई पता नहीं चल पाया। चेतसिंह के (वाराणसी में) शिवाला स्थित किले
पर कबूतर आज भी
बीट करते हैं। तब से लेकर सन 1960-70 तक काशी-राजघराना, गोद-गोद ले-ले कर ही चलता रहा। कई जगहों पर
कोशिश-मन्नतें-प्रार्थना की गयीं, लेकिन
सब व्यर्थ।
इसी दरम्यान, विख्यात तत्कालीन काशी-नरेश विभूति
नारायण सिंह ने विश्व-विख्यात औघड़ संत बाबा अवधूत भगवान् राम (अघोराचार्य बाबा
सिद्धार्थ गौतम
राम जी के गुरू) जी से श्राप-विमोचन की प्रार्थना किया। साथ ही अवधूत भगवान् राम के गुरू,
महान अघोरी बाबा राजेश्वर राम जी,
से भी प्रार्थना। श्राप की कमी में आंशिक असर तो हुआ,
पर पूर्ण रूप से ख़त्म नहीं। स्वयं अवधूत भगवान् राम
बाबा ने, काशी नरेश से कहा कि,
“11वीं गद्दी पर (अपनी पूर्व-भविष्यवाणी के
तहत) वो आयेंगें तो ही पूर्ण श्राप-मुक्ति संभव है, वो भी जब वो 30 साल की अवस्था पार कर लेंगें तब।”
यहाँ पाठकों के लिए ये बता देना ज़रूरी
है कि सन 1750-1800 के
बीच अपनी समाधि
के वक़्त बाबा कीनाराम जी ने स्वयं कहा था, कि, “इस
पीठ की 11वीं गद्दी पर मैं बाल-रूप
में पुनः आऊंगा तो पूर्ण-जीर्णोद्धार होगा।” 10 फरवरी 1978 को वो दिन भी आया, जब महाराजश्री बाबा कीनाराम जी,
11वें पीठाधीश्वर के रूप में, पुनः बाल रूप (मात्र 9 वर्ष की आयु में) में उपस्थित हुए—- नया नाम—-अघोराचार्य
बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी।
काशी राज-घराना इस सिद्ध पीठ पर उनकी वापसी का बेसब्री
से इंतज़ार कर रहा था। लेकिन सवाल महाराजश्री के बाल रूप के युवा होने तक
का था। यानि महाराजश्री के इस जीवन-काल में, 30 साल की आयु पूरी होने तक। 1999 में महाराजश्री के बाल-रूप ने, 30 वर्ष की आयु का युवा स्वरूप जब हासिल कर
लिया तो काशी राज-घराने से जुड़े लोगों ने श्राप-मुक्ति हेतु
प्रार्थना-याचना, अनुनय-विनय
की प्रक्रिया
काफी तेज़ कर दी। ऐसा करते-करते अगस्त 2000 भी आ गया। एक बार फिर, अचानक, 20 अगस्त
को राजकुमारी, फल-फूल
के साथ एक बार फिर प्रार्थना-याचना करने पहुँची।
अघोराचार्य महाराजश्री ने कहा …. आऊंगा।
30 अगस्त 2000 को वो दिन भी आया, जब बेसब्री के साथ काशी का राज-घराना,
पूरी दुनिया में अघोर के आचार्य यानि अघोराचार्य
महाराजश्री बाबा कीनाराम जी का इंतज़ार कर रहा था। पूरे महल को सजाया गया था। पूरी दुनिया में
अघोर परम्परा के, शिव-स्वरुप,
मुखिया का इंतज़ार था। इंतज़ार की घड़ी ख़त्म हुई। हर-हर महादेव
का गगन-भेदी उदघोष होने लगा। अपने नए नाम.…अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम,
व् रूप में महाराजश्री वहाँ पहुंचे। काशी-नरेश की
अगुवाई में, फूलों की वर्षा के
साथ अघोराचार्य
महाराजश्री का भव्य स्वागत करते हुए उन्हें महल के पूजन-कक्ष
में ले जाया गया।
पूजा-पाठ के बाद , बाबा
ने मिष्ठान ग्रहण कर काशी-राजघराने को श्राप-मुक्त कर दिया। बाबा ने दुखी-जनों की
सेवा करने का भाव
जगाते हुए, राज-घराने को
आशीर्वाद दिया।
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