Baba Kinaram Ki Kahani part 5 | "Jo na kare ram, Wo Kare Kinaram "

  “जो न करें राम- वो करें कीनाराम” 

baba kinaram asharam


ब्राह्मणी को सन्तान प्राप्ति: – बाबा कीनाराम जी के जीवन चरित्र को संक्षिप्त रूप में लोग यही कहते हैं कि — जो न करें राम- वो करें कीनाराम । ऐसी ही एक घटना है जब काशी के एक विख्यात वृद्ध सन्त के यहां एक निःसंतान ब्राह्मणी रोज सेवा करने जाया करती थी। सन्त ने महिला से पूछा ….  माता, आप इतने दिनों से आकर सेवा करती हो और चली जाती हो, बोलो क्या बात है। ब्राह्मणी रो पड़ी और बोली … महाराज मुझे संतान नही है। ब्राह्मणी के इस कष्ट को देखकर उन सन्त ने अपने इष्ट-देव का ध्यान कर ब्राह्मणी के दुःख का निवारण करने को कहा लेकिन उनके ईष्ट-देव ने कहा कि इस ब्राह्मणी की क़िस्मत में संतान नहीं । उन संत ने जब ये बात ब्राह्मणी को बताई तो दुखी ब्राह्मणी वहाँ से रोते हुए निकल पडी और अपने घर को जाने लगी …  तभी रास्ते में उसे एक सुशील महिला मिली। उस महिला ने ब्राह्मणी से रोने का कारण पूछा तो उसने सब कुछ बता दिया। यह सुनकर उस सुशील महिला ने उस ब्राह्मणी को बाबा कीना राम जी के पास जाने को कहा । उस समय महाराज श्री बाबा कीनाराम जी क्रीं कुण्ड में ही निवास कर रहे थे ….  उस ब्राह्मणी की याचना पर बाबा कीनाराम जी ने अपनी छड़ी से उस ब्राह्मणी को चार बार स्पर्श किया । ऐसा करने के बाद उस ब्राह्मणी को आगे चलकर चार संतान की प्राप्ति हुई ।

बाद में अपनी मानी गए मनौती के अनुसार ब्राह्मणी जब अपने बच्चों के साथ उन्हीं विख्यात वृद्ध संत के  यहां बच्चों का मुण्डन कराने गई तो वो विख्यात वृद्ध संत ब्राह्मणी से पूछ बैठे कि – ये सारे बच्चे किसके हैं ? ब्राह्मणी ने बाबा कीनाराम जी के आशीर्वाद और फलस्वरूप अपने बच्चों के जन्म की पूरी कहानी उन संत को सुना दी ।  वो विख्यात वृद्ध संत आश्चर्य में पड़ गए और उन्होंने ध्यान लगाकर अपने ईष्ट-देव से इसका कारण जानना चाहा । वृद्ध संत के इस सवाल पर इनके इष्ट देव ने कहा कि मैं इस बात का जवाब ज़रुर दूंगा, मगर इससे पहले मुझे जीवित इंसान का ताज़ा मांस लाकर दो ! अपने इष्टदेव की इस मांग पर वो वृद्ध संत घबड़ा गए और इस मांग की पूर्ति करने में अपनी असमर्थता ज़ाहिर करने लगे । आख़िरकार उनके इष्ट-देव ने उन संत को बाबा कीनाराम जी के पास भेजा। बाबा कीनाराम जी के पास पहुंचकर उन वृद्ध संत ने अपने ईष्ट देव की मांग बताई। ये सुनते ही बाबा कीनाराम जी ने अपने दाहिनी जांघ से अपना मांस काट कर उन वृद्ध संत को दे दिया । वो संत इसे लेकर जब अपने ईष्ट के पास पहुंचे तो उनके ईष्ट ने कहा कि – हे संत, यह मांस तो तुम्हारे पास भी है परन्तु तुमने इसे अपने पास से देने की बजाय बाबा कीनाराम जी से मांगकर दिया और कीना राम ने इसे सहर्ष दे दिया । इसी प्रकार कीनाराम ने उस ब्राह्मणी को भी सन्तान दे दिया। मैं क्या कर सकता हूँ ! वो वृद्ध संत बाबा कीनाराम जी के प्रति श्रद्धा से भर उठे। तभी से काशी के घर-घर में ये कहावत है कि — — “जो न करें राम- वो करें कीनाराम” 

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