Baba Kinaram ke Dwara Beejaram Ji ki Mukti ki Kahani
बाबा शिवादास के यहां से निकलकर बाबा कीनाराम ने अपनी आगे की यात्रा शुरू किया और इस दौरान आप पहुंचे कारों नाम के एक गांव में । वहाँ बाबा ने देखा कि एक विधवा बूढ़ी मां रो और कलप रही है …… बाबा कीनाराम जी ने …. उसके रोने का कारण पूछा । पता चला कि, बकाए मालगुजारी की वसूली के लिए उसके एक मात्र पुत्र ‘विजय’ को वहाँ का जमींदार तपती धूप में बंधवा कर मार रहा था । बाबा कीनाराम जी ने जमींदार को समझाया और मानवता के नाम पर क्रूर व्यवहार छोड़ने को कहा । लेकिन ज़मींदार बिना लगान वसूली के उस विधवा के पुत्र को छोड़ने को तैयार न था । ऐसे में बाबा कीनाराम जी ने जमींदार से कहा कि तुम अपने नीचे की ज़मीन खोदकर लगान राशि को हासिल कर लो । पहले तो ज़मींदार को यक़ीन नहीं हुआ लेकिन गुस्से में आकर जब जमींदार ज़मीन खोदने लगा तो ज़मीन के अंदर दौलत से भरा मटका देख कर वो बाबा कीनाराम जी के चरणों में गिर पड़ा । अब उस विधवा माँ का पुत्र विजय आज़ाद था , जिसे बाबा कीनाराम जी ने माँ संग घर जाने को कहा। लेकिन विजय की मां ने कहा कि…… बाबा, आप न होते तो यह ज़मींदार के हाथों मार डाला गया होता, आप ने इसे बचाया और ये अब आपका है । माँ का वो पुत्र विजय अब बाबा कीनाराम जी के साथ हो चला था और यही विजय, बाद में जाकर बाबा बीजाराम जी के रूप में विख्यात हुए ।
Chakki Chalakar Baba Kinaram ke dwara Sadhuwo Ki Mukti
अपनी आगे की यात्रा में बाबा कीनाराम जी अब अपने शिष्य विजय उर्फ़ बाबा बीजाराम जी के साथ पहुंचे गुजरात के जूनागढ़ में । जूनागढ़ में पहुंचकर बाबा कीनाराम जी ने बाबा बीजाराम जी को भिक्षाटन हेतु भेजा । लेकिन जूनागढ़ के निःसंतान नवाब ने अपने राज्य में भिक्षा मांगने वालों को जेल में डालने का आदेश दे रखा था । लिहाज़ा बाबा बीजा राम जी भी जेल में बंद कर दिए गए । उधर बहुत देर होने पर भी जब बाबा बीजाराम जी नहीं लौटे तो बाबा कीनाराम जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से सारा घटनाक्रम जान लिया तथा स्वयं भिक्षा हेतु निकल पड़े और नवाब के क़ानून के हिसाब से बाबा कीनाराम जी को भी जेल जाना पड़ा । जेल में सभी बंदियों को हाथ से घंटों चक्की चलाकर आटा पीसना पड़ता था । नवाब के इस अत्याचार से दुखी होकर बाबा कीनाराम जी ने साधुओं को चक्की चलाने से मना किया और बाद में अपनी कुबड़ी से चक्की ठोंक कर कहा ‘चल चल रे चक्की’। वहाँ मौजूद सारी चक्कियां अपने-आप चलने लगीं ।
नवाब द्वारा किले में महाराज श्री का स्वागत:
चक्कियों को खुद-ब-ख़ुद चलता देख लोग आअश्चर्य में पड़ गए। इस अद्भुत नज़ारे की खबर जब नवाब तक पहुँची तो वह दौड़ कर आया और वह महाराज श्री बाबा कीनाराम जी से माफ़ी माँगा और उन्हें सम्मानपूर्वक अपने किले में ले गया। उसने उपहारस्वरुप बाबा कीनाराम जी को हीरे-जवाहरात और रत्न आदि भेंट किया लेकिन बाबा ने एक रत्न लेकर को लेकर अपने मुंह में रखा और ये कहते हुए …… कि….. ये बेस्वाद हैं, न खट्टे हैं और न ही मीठे, मेरे किस काम के? थूक दिया तथा नवाब से कहा कि आज से आदेश करो भिक्षुओं को ढाई पाव आटा नमक इत्यादि दिया जाया । नवाब ने तत्काल बाबा कीनाराम जी के आदेश का पालन किया । सभी साधु जेल से छूट गए और बाद में नवाब को सन्तान प्राप्ति भी हुई ।
Kinaram Baba Hingalaaz Devi se Aashirwad
जूनागढ़ से चलकर बाबा कीनाराम जी ने कराची स्थित माता हिंगलाज मंदिर का रूख किया । उस वक़्त, कच्छ की खाड़ियों और दलदलों के चलते, इस स्थान पर पहुँच पाना नामुकिन था । लेकिन बाबा कीनाराम जी यहां पहुँच गए और पास में धूनी रमाकर तपस्यारत हो गए । यहां पर बाबा कीनाराम जी को एक कुलीन महिला खाने के लिए प्रतिदिन अच्छे अच्छे व्यंजन देने लगी । एक दिन महाराज श्री ने माता जी से उनका परिचय पूछा और बिना परिचय जाने भोजन न करने की ज़िद्द पकड़ बैठे । उन माता ने अपना स्वरुप प्रकट किया और कहा कि मैं ही ‘मां हिंगलाज’ हूं। अब मैं यहाँ से हट कर काशी में मौज़ूद केदार खण्ड स्थित ‘क्री कुण्ड’ पर गुफा में यन्त्रवत होऊंगी, तुम वहीं आना ।
गिरनार में दूर दृष्टि की उपलब्धि:
अपनी यात्रा के एक महत्वपूर्ण दौर में बाबा कीनाराम जी …… गुजरात में जूनागढ़ स्थित …. गिरनार पर्वत पर जा पहुंचे …… यहां पहुंचकर बाबा कीनाराम जी ने देखा कि यहां पर्वत पर देखा कि अघोरी शिला पर कमण्डल लिए, कुण्ड कमण्डल लिए सिद्धेश्वर आदिगुरु भगवान् दत्तात्रेय को देखा। उस वक़्त आदिगुरु के हाथ में मांस का एक बड़ा टुकड़ा था और वो बड़े बड़े वीभत्स रुप में बड़े वीभत्स रुप में दर्शन देते नज़र आ रहे थे । बाबा कीनाराम जी को देखते ही आदिगुरु ने उसी माँस का एक टुकड़ा दांतों से काटकर उन्हें दिया जिसे खाते ही उन्हें दूर दृष्टि की प्राप्ति हुई । अचानक गुरु दत्तात्रेय ने कहा “दिल्ली का बादशाह” ! बाबा कीनाराम जी ने कहा “काले घोड़े पर जा रहा है सफेद शॉल है जो नीचे गिर रहा है। कीनाराम बाबा की असीमित आध्यात्मिक चेतना को देख आदिगुरु दत्तात्रेय ने; कहा जाओ समाज को चेतना दो ।
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